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श्री बाबा रामदेवजी की आरती

जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार।
लाज रखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार।

दीन बन्धु किरपा करो, मोर हरो संताप।
स्वामी तीनो लोक के, हरो क्लेश, अरू पाप।

।। चैपाई ।।

जय जय रामदेव जयकारी। विपद हरो तुम आन हमारी।।
तुम हो सुख सम्पति के दाता। भक्त जनो के भाग्य विधाता।।

बाल रूप अजमल के धारा। बन कर पुत्र सभी दुख टारा।।
दुखियों के तुम हो रखवारे। लागत आप उन्हीं को प्यारे।।

आपहि रामदेव प्रभु स्वामी। घट घट के तुम अन्तरयामी।।
तुम हो भक्तों के भयहारी। मेरी भी सुध लो अवतारी।।

जग में नाम तुम्हारा भारी। भजते घर घर सब नर नारी।।
दुःख भंजन है नाम तुम्हारा। जानत आज सकल संसारा।।

सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी। तुम हो जग के अन्तरयामी।।
कलियुग में प्रभु आप पधारे। अंश एक पर नाम है न्यारे।।

तुम हो भक्त जनों के रक्षक। पापी दुष्ट जनों के भक्षक।।
सोहे हाथ आपके भाला। गल में सोहे सुन्दर माला।।

आप सुशोभित अश्व सवारी। करो कृपा मुझ पर अवतारी।।
नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे। पाप अविधा सब दुख नाशे।।

तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे। नित्य बसो प्रभु हिये हमारे।।
लीला अपरम्पार तुम्हारी। सुख दाता भय भंजन हारी।।

निर्बुद्धी भी बुद्धी पावे। रोगी रोग बिना हो जावे।।
पुत्र हीन सुसन्तति पावे। सुयश ज्ञान करि मोद मनावे।।

दुर्जन दुष्ट निकट नही आवे। भूत पिशाच सभी डर जावे।।
जो काई पुत्रहीन नर ध्यावे। निश्चय ही नर वो सुत पावे।।

तुम ने डुबत नाव उबारी। नमक किया मिसरी को सारी।।
पीरों को परचा तुम दिना। नींर सरोवर खारा किना।।

तुमने पत्र दिया दलजी को।ज्ञान दिया तुमने हरजी को।।
सुगना का दुख तुम हर लीना। पुत्र मरा सरजीवन किना।।

जो कोई तमको सुमरन करते। उनके हित पग आगे धरते।।
जो कोई टेर लगाता तेरी। करते आप तनिक ना देरी।।

विविध रूप धर भैरव मारा। जांभा को परचा दे डारा।।
जो कोई शरण आपकी आवे। मन इच्छा पुरण हो जावे।।

नयनहीन के तुम रखवारे। काढ़ी पुगंल के दुख टारे।।
नित्य पढ़े चालीसा कोई। सुख सम्पति वाके घर होई।।

जो कोई भक्ति भाव से ध्याते। मन वाछिंत फल वो नर पाते।।
मैं भी सेवक हुं प्रभु तेरा। काटो जन्म मरण का फेरा।।

जय जय हो प्रभु लीला तेरी । पार करो तुम नैया मेरी।।
करता नन्द विनय विनय प्रभु तेरी। करहु नाथ तुम मम उर डेरी

श्री रामदेव जी की आरती

पिछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारिया ।
घर अजमल अवतार लियो ।
लाछां सुगणा करे थारी आरती ।

हरजी भाटी चंवर ढोले ।
गंगा जमुना बहे सरस्वती ।
रामदेव बाबो स्नान करे ।
लाछां सुगणा करे…

घिरत मिठाई बाबा चढे थारे चूरमो ।
धूपारी महकार पङे ।
लाछां सुगणा करे…

ढोल नगाङा बाबा नोबत बाजे ।
झालर री झणकार पङे ।
लाछां सुगणा करे…

दूर-दूर सूं आवे थारे जातरो ।
दरगा आगे बाबा नीवण करे ।
लाछां सुगणा करे…

हरी सरणे भाटी हरजी बोले ।
नवों रे खण्डों मे निसान घुरे ।
लाछां सुगणा करे…

जै बाबा रामदेव्

श्री बाबा रामदेवजी की आरती

जय अजमल लाला प्रभु, जय अजमल लाला ।।
भक्त काज कलयुग में लीनो अवतारा, जय अजमल लाल ।। (1)
अश्वनकी अवसारी शोभीत केशरीया जामा ।
शीस तुर्रा हद शोभीत हाथ लीया भाला ।। जय (2)
डुब्त जहाज तीराई भैरव दैत्य मारा ।
कृष्णकला भयभजन राम रूणेचा वाला ।। जय (3)
अंधन को प्रभु नेत्र देत है सु संपती माया ।
कानन कुंडल झील मील गल पुष्पनमाल ।। जय (4)
कोढी जय करूणा कर आवे होंय दुखीत काया ।
शरणागत प्रभु तोरी भक्तन सुन दाया ।। जय (5)
आरती रामदेव जी की नर नारी गावे ।
कटे पाप जन्म-जन्म के मोंक्षां पद पावे ।। जय (6)
जय अजमल लाला प्रभु, जय अजमल लाला ।

रामदेवजी महाराज की आरती

पिछम दिशा सूं म्हारा पीरजी पधारीया, घर अजमल अवतार लीयोंलाछा-सुगणाबाई करै हर री आरती !

हरजी भाटी चंमर ढोळेखम्मा खम्मा खम्मा रे कंवर अजमल रा, खम्मा खम्मा खम्मा रे कंवर
अजमल राविणा रे तंदुरा धणी रै नौपत बाजे, झालर रौ झणकार पड़े….लाछा-सुगणाबाई…..
धिरत मीठाई हरी रै चढ़े रे चुरमा, धुपौ री धमराळ पड़े….लाछा-सुगणाबाई…..
गंगा-जमुना बहे रे सरस्वती, रामदेव बाबौ स्नान करै….लाछा-सुगणाबाई…..
दुरांरै देसौरा बाबा आवै रे जातरूं, दरगा आगे नमन करै….लाछा-सुगणाबाई…..
छोटा-म्होटा टाबरिया पीरजी पुकारै, म्होटोड़ा तौ रामदेवजी कहवै जीयौ….लाछा-सुगणाबाई…..
हरि शरणौ में भाटी हरजी बोल्या, नवरे खंडौ में निशाण पड़ै….लाछा-सुगणाबाई…..
श्री रामदेव रक्षा करो, हरो संकट संताप।सुखकर्ता समरथ धणी जपुंनिरंतर जाप।।

बाबा रामदेव चालीसा

।। दोहा ।।

जय जय प्रभु रामदेव, नमो नमो हरबार । लाज राखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार ।।
दीन बन्धु किरपा करोए, मोर हरो संताप । स्वामी तीनों लोक केए हरो क्लेश, अरू पाप ।।

जय जय रामदेव जयकारी ।

 

तुम हो सुख सम्पत्ति के दाता ।
बाल रूप अजमल के धारा ।
दुखियों के तुम हो रखवारे ।
आपहि रामदेव प्रभु स्वामी ।
तुम हो भक्तों के भय हारी ।
जग में नाम तुम्हारा भारी ।
दु:ख भंजन है नाम तुम्हारा ।
सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी ।
कलियुग में प्रभु आप पधारे ।
तुम हो भक्त जनों के रक्षक ।
सोहे हाथ आपके भाला ।
आप सुशोभित अश्व सवारी ।
नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे ।
तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे ।
लीला अपरम्पार तुम्हारी ।
निर्बुद्धि भी विद्या पावे ।
पुत्र हीन सु सन्तति पावे ।
दुर्जन दुष्ट निकट नहिं आवें ।
जो कोई पुत्र हीन नर ध्यावै ।
तुमने डूबत नाव उबारी ।
पीरों को परचा तुम दीना ।
तुमने पुत्र दिया दलजी को ।
सुगना का दु:ख तुम हर लीना ।
जो कोई तुमको सुमिरन करते ।
जो कोई टेर लगाता तेरी ।
विविध रूप धर भैरव मारा ।
जो कोई शरण आपकी आवे ।
नयनहीन के तुम रखवारे ।
नित्य पढ़े चालीसा कोई ।
जो कोई भक्ति भाव से धयाते ।
मैं भी सेवक हूँ प्रभु तेरा ।
जय जय हो प्रभू लीला तेरी ।
करता नन्द विनय प्रभु तेरी ।

विपदा हरो तुम आन हमारी ।।
भक्तजनों के भाग्य विधाता ।।
बनकर पुत्र सभी दु:ख हारा ।।
लागत आप उन्हीं को प्यारे ।।
घट घट के तुम अन्तरयामी ।।
मेरी भी सुध लो अवतारी ।।
भजते घर घर सब नर नारी ।।
जानत आज सकल संसारा ।।
तुम हो जग के अन्तरयामी ।।
अंश एक पर नाम है न्यारे ।।
पापी दुष्ट जनों के भक्षक ।।
गले में सोहे सुन्दर माला ।।
करो कृपा मुझा पर अवतारी ।।
पाप अविद्या सब दुख नाशे ।।
नित्य बसो प्रभु हिये हमारे ।।
सुख दाता भय भंजन हारी ।।
रोगी रोग बिना हो जावे ।।
सुयश ज्ञान करि मोद मनावे ।।
भूत पिशाच सभी डर जावें ।।
निश्चय ही नर व सुत पावैं ।।
मिसरी किया नमक को सारी ।।
नीर सरोवर खारा कीना ।।
ज्ञान दिया तुमने हरजी को ।।
पुत्र मरा सर जीवन कीना ।।
उनके हित पग आगे धरते ।।
करते आप तनिक ना देरी ।।
जांभा को परचा दे डाला ।।
मन इच्छा पूरण हो जावे ।।
कोढ़ी पुंगल के दु:ख टारे ।।
सुख सम्पत्ति वाके घर होई ।।
मन वांछित फल वो नर पाते ।।
काटो जनम मरण का फेरा ।।
पार करो तुम नैया मेरी ।।
करहु नाथ तुम मम उर डेरी ।।

।। दोहा ।।

भक्‍त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़ । विनती है प्रभु आपसे नन्‍द करे कर जोड़ ।।
यह चालीसा नित्‍य उठ पाठ करे जो कोय । मन वांछित फल पाय वो सुख सम्‍पत्ति घर होय ।।

श्री रामदेव चा‍लीसा

अजमल सुत रामदेव नामा, जग में आए जीव तारण के कामा ।

शीश तुरां गल मोतियन माला, नीले की असवारी केसरिया जामा ।।
आप प्रभु बोद्धित्‍वा दियो, माघ कृष्‍णा शुभ‍ दिन शनिवार ।

कलियुग सम्‍वत् 2056, चतुर्भुज रूप में, दिया ज्ञान का सार ।।

 

जय श्री रामदेव अवतारी, विपद हरो प्रभु आन हमारी ।।
भावदा शुद दूज को आया, अजमल जी से कौल निभाया ।।
अजमल जी को परचो दियो, जग में नाम अमर है कियो ।।
द्वारका छोड़ मरूधर में आया, भक्‍ता का है बन्‍द छुड़ाया ।।
माता मैनादे की शंका मिटार्इ, पल में दूध पे कला बरताई ।।
कपड़ा को घोड़ो है उड़ायो, दर्जी को है पर्चों दियो ।।
तीजी कला यूं बरताई, जग में शक्ति आप दिखाई ।।
स्‍वारथिया को आप जिवाओ, चौथी कला को यूं बरताओं ।।
मिश्री को है नमक बनाया, लखी बनजारा को पर्चों दिखाया ।।
मन शुद्ध कर भक्ति बतलाई, इन विध पांचु कला बरताई ।।
मोहम्‍मद को है पर्चों दिन्‍हो, लंगड़ा से अच्‍छा है किन्‍हो ।।
विकट रूप धर भैरों मारा, साधु रूप धर भक्‍त तारा ।।
भैरों को थे नीचे दबाया, जन-जन को सुखी कर दिया ।।
बालीनाथ का बचन पुराया, आप चतुर्भुज रूप दिखाया ।।
पुगलगढ़ में आप आया, रत्‍ना राईका को आन छुड़ाया ।।
सुगना के पुत्र को जिवाया, ऐसा पर्चा आप दिखाया ।।
नेतलदे को रूप दिखाया, छुट्टी कला का दर्शन कराया ।।
बोहिता बनिया को मिश्र पठाया, डूबत जहाज आप तराया ।।
नुगरा को सुगरा कर दिया, नाम बताये अमर कर दिया ।।
ऋषियों को थे मान राखो, उनकों जग में ऊंचा राखो ।।
डालीबाई जन्‍मी नीचड़ा, थाणे सिमरयां होई ऊंचड़ा ।।
पिछली भक्ति रंग है लाई, थाणे सिमरयां भव से पर होई ।।
धारू रूपांदे थाणे ध्‍याया, जग तारण हारे का दर्शन पाया ।।
धेन दास का पुत्र जिवाया, जुग में ऐसा खेल दिखाया ।।
जैसल को शुद्ध बद्धि दीन्ही, संग में तोलादे नार दीन्ही ।।
ऊद्धा का अभिमान मिटाया, देके भगवां संसा मिटाया ।।
जाम्भा जी को पर्चा दीन्हो, सरवर पानी खारो किन्हो ।।
मक्का से पीर आया, बर्तन अपना भूल आया ।।
पीरां को पर्चा दिया, बर्तन बांका में भोग दिया ।।
रामा पीर जगत को तारो, ऐसा ध्यान तुझ में म्हारों ।।
कलियुग में परताप तुम्हारों, अपना वचन आप सम्हारो ।।
बकरी चरांतां हरजी को मिल गया, देके ज्ञान निहाल कर गया ।।
हरजी जमला थारा जगावे, घर-घर जाके परचा सुनावे ।।
कूड़ा विजय सिंह को आप डराओं, हाकम हजारी से मनौती कराओ ।।
निपुत्रां को पुत्र देवो, कोढ़ियों को कलंक झड़ावो ।।
राक्षस भूत निकट नहीं आवे, रामदेव जब नाम सुनावे ।।
जो सत्वार पाठ करे कोई, छूटे दुखड़ा महासुख होई ।।
जो बाचें ”श्री रामदेव” चालीसा, बांका संकट कटे हमेशा ।।

 

दोहा

सवामी सकल ब्रह्माण्ड के, लियो कलयुग अवतार ।
रामदेव स्वरूप ‘अलख’ के, तारो जीव हे करतार ।।

बाबा रामदेव जी आरती राजस्थानी ओरिजिनल आरती